किसी भी कार्य को बिना फल की इच्छा के करना चाहिए।

KHABAR AAPTAK NEWS INDIA 
दतिया ब्यूरो दीपक श्रीवास्तव 
रिपोर्टर चेतन दास सुखानी, रामलाल गौतम 

निस्वार्थ कर्म: किसी भी कार्य को बिना फल की इच्छा के करना चाहिए, यही सच्चे कर्म का मार्ग है -श्री बाबू लाल दीक्षित कथा व्यास

दतिया/श्री श्री 1008 श्री चैतन्यदास जी महाराज धर्मार्थ एवं चेरिटेबिल ट्रस्ट दतिया द्वारा हनुमान गढ़ी पर
श्री चन्द्र भगवान का 531 वाँ जन्मोत्सव श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ एवं विशाल भण्डारा आयोजन सोमवार, दिनांक : 01 सितम्बर 2025 स्थान  हनुमानगढ़ी, दतिया पर किया जायेगा. उक्त कार्यक्रम श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ रविवार 24 अगस्त को श्री गणेश पूजन, कलश यात्रा निकाली गयी एँव श्रीमद् भागवत कथा सोमवार 25 अगस्त से प्रारम्भ की गयी एँव रविवार 31 अगस्त श्रीमद् भागवत कथा विश्राम होगा. कथा परीक्षत श्री मति सुमन-श्याम सुन्दर जड़िया हैं.एँव कथा बाचक श्री बाबूलाल दीक्षित जी द्वारा भागवत उपदेश मुख्य रूप से बताया कि श्रीमद्भगवद्‌गीता में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को कहते हैं, जिनमें जीवन के हर पहलू से जुड़े सारगर्भित ज्ञान का वर्णन है। ये उपदेश कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए थे, और इनमें कर्मयोग, निस्वार्थ भाव से कार्य करना, इंद्रियों पर नियंत्रण, मोह-माया से मुक्ति, और आत्मज्ञान के महत्व पर जोर दिया गया है भागवत उपदेशों के मुख्य बिंदु: 
निस्वार्थ कर्म: किसी भी कार्य को बिना फल की इच्छा के करना चाहिए, यही सच्चे कर्म का मार्ग है और इससे व्यक्ति दुखों से मुक्त होता है।आत्मज्ञान: स्वयं को समझना और अपने गुणों व कमियों को जानना ही सच्ची सफलता और व्यक्तित्व के निर्माण का आधार है।परिस्थितियों से घबराएँ नहीं: जो हो रहा है उसे स्वीकार करें और विश्वास रखें कि ईश्वर ने आपकी सोच से बेहतर आपके लिए सोचा है। परिस्थिति बदलने वाली होती है, इसलिए धैर्य और हिम्मत बनाए रखें।क्रोध, लोभ और मोह का त्याग: ये तीनों बुराइयाँ व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाती हैं और कष्टों को जन्म देती हैं, इसलिए इनका त्याग आवश्यक है।वर्तमान में जिएं: भविष्य की चिंता न करें और जो हुआ, हो रहा है, या होगा, उस पर विश्वास रखें। वर्तमान में पूरी तरह जीने की कला सीखें।सत्य का मार्ग अपनाएं: सत्य बोलने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है क्योंकि वह किसी भी चीज से डरता नहीं है।दूसरों से तुलना न करें: अपनी तुलना दूसरों से करना छोड़ दें और जैसे हैं, वैसे ही खुद को स्वीकार करें, यही खुशी का मूल मंत्र है। उन्होंने ऐसा बताया हैं.कार्यक्रम मे अनेक संख्या मे श्रदांलु एँव भक्त उपस्थित रहें।

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